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अथर्व (वेद)  : पुं० [सं० अथ√ऋ(गति) +वनिप्, शक० पररूप अथर्व-वेद, कर्म० स०] आर्यों या हिन्दुओं के चार वेदों में से अंतिम या चौथा वेद, जिसके मंत्रद्रष्टा या ऋषि लोग भृगु और अंगिरा गोत्र वाले थे। विशेष—कहा जाता है कि इसमें ऐसे मंत्रों का संग्रह है जिनसे रोगों और विपत्तियों का निवारण होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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